विश्वासघात और भाई-भतीजावाद के भरोसे हमेशा सत्ता से चिपके रहना जानता है Jharkhand का 'सोरेन' परिवार

सोरेन परिवार का झारखंड की राजनीति में लंबे समय से दबदबा रहा है। 1973 में स्थापना होने के बाद से लेकर अब तक झारखंड मुक्ति मोर्चा पर सोरेन परिवार का प्रभाव बना हुआ है। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ सोरेन परिवार की सत्ता पर पकड़ कमजोर होती जा रही है और विवादों से घिर रही है। पार्टी के दिग्गज नेता चंपई सोरेन को हेमंत सोरेन द्वारा हाल ही में दरकिनार किए जाने से जेएमएम के भीतर भाई-भतीजावाद और सत्ता संघर्ष की बात सामने आई है। इससे लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं कि क्या पूरा सोरेन परिवार झारखंड की भलाई से ज्यादा अपनी विरासत बचाने पर ध्यान दे रहा है?पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को अचानक सत्ता से हटाना, सोरेन परिवार पर कई सवाल खड़े करता हैचंपई सोरेन चार दशकों से अधिक समय तक झारखंड राज्य के लिए लड़ाई का एक प्रमुख चेहरा थे। झारखंड राज्य गठन आंदोलन के दौरान उन्होंने आगे बढ़कर नेतृत्व किया। वे एक मजबूत नेता के तौर पर उभरकर सामने आए थे। जिन्होंने बिनोद बिहारी महतो जैसे अन्य प्रमुख व्यक्तियों के साथ आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके इस योगदान के बावजूद चंपई राजनीतिक यात्रा में अब अकेले पड़ गए है

विश्वासघात और भाई-भतीजावाद के भरोसे हमेशा सत्ता से चिपके रहना जानता है Jharkhand का 'सोरेन' परिवार
सोरेन परिवार का झारखंड की राजनीति में लंबे समय से दबदबा रहा है। 1973 में स्थापना होने के बाद से लेकर अब तक झारखंड मुक्ति मोर्चा पर सोरेन परिवार का प्रभाव बना हुआ है। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ सोरेन परिवार की सत्ता पर पकड़ कमजोर होती जा रही है और विवादों से घिर रही है। पार्टी के दिग्गज नेता चंपई सोरेन को हेमंत सोरेन द्वारा हाल ही में दरकिनार किए जाने से जेएमएम के भीतर भाई-भतीजावाद और सत्ता संघर्ष की बात सामने आई है। इससे लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं कि क्या पूरा सोरेन परिवार झारखंड की भलाई से ज्यादा अपनी विरासत बचाने पर ध्यान दे रहा है?

पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को अचानक सत्ता से हटाना, सोरेन परिवार पर कई सवाल खड़े करता है

चंपई सोरेन चार दशकों से अधिक समय तक झारखंड राज्य के लिए लड़ाई का एक प्रमुख चेहरा थे। झारखंड राज्य गठन आंदोलन के दौरान उन्होंने आगे बढ़कर नेतृत्व किया। वे एक मजबूत नेता के तौर पर उभरकर सामने आए थे। जिन्होंने बिनोद बिहारी महतो जैसे अन्य प्रमुख व्यक्तियों के साथ आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके इस योगदान के बावजूद चंपई राजनीतिक यात्रा में अब अकेले पड़ गए हैं। उन्हीं की पार्टी ने चंपई सोरेन को आज नजरअंदाज कर दिया है। जिसके लिए उन्होंने खून-पसीना बहाकर बिना किसी स्वार्थ के सालों काम किया था।

उन्होंने उथल-पुथल भरे दौर में झारखंड की बागडोर संभाली और चार महीने तक गठबंधन की सरकार का नेतृत्व किया। भले ही उनका कार्यकाल संक्षिप्त रहा हो लेकिन उन्होंने सरकार को स्थिर करने और राज्य के नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही हेमंत सोरेन जेल से वापस आए, चंपई से अचानक इस्तीफा मांग लिया गया और हेमंत सोरेन को दोबारा सत्ता में बिठाया गया। कई लोगों ने सत्ता के इस परिवर्तन को विश्वासघात के रूप में देखा है। खासकर चुनौतीपूर्ण समय के दौरान पार्टी को एकजुट रखने में चंपई की भूमिका को जिस तरह से नजरअंदाज किया गया, वो लोगों के मन में खटकने लगा है। खासकर कोल्हान क्षेत्र में, जहां लोग पूछ रहे हैं कि "क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सोरेन होने के बावजूद वह शिबू के बेटे नहीं हैं?"

'सोरेन' के सत्ता का खेल : परिवार पहले, झारखंड बाद में

झारखंड के कल्याण के बजाए सोरेन परिवार अपने हितों को प्राथमिकता देने के लिए लगातार आलोचनाओं के घेरे में हैं। जिस तरह जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन तेजी से दोबारा सत्ता में वापस आए, वह दिखाता है कि पार्टी में गठबंधन और समर्थन के लिए कोई सम्मान नहीं है। जिसने उनकी अनुपस्थिति में पार्टी को बचाए रखा था, उन्हें भी उन्होंने अपमानित महसूस करवाया। इस परिवार की एकाधिकार की भावना ने उनकी पार्टी के भीतर और बाहर कई लोगों को अलग-थलग कर दिया है, जिससे झारखंड के लोगों में लगातार असंतोष बढ़ रहा है। शिबू और हेमंत सोरेन दोनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों ने JMM की छवि को धूमिल की है।

झारखंड की सत्ता पर एकाधिकार समझता है सोरेन परिवार!

अपने वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन को दरकिनार करना न केवल आंतरिक सत्ता संघर्ष को दिखाता है बल्कि JMM के भीतर इस मुद्दे को भी दिखाता है कि उनको ऐसा लगता है कि सोरेन परिवार का ही झारखंड की सत्ता पर एकाधिकार है। हालांकि, शिबू सोरेन को झारखंड आंदोलन का बड़ा चेहरा माना जाता है। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि राज्य के आंदोलन की लड़ाई एक सामूहिक कोशिश थी। जिसमें बिनोद बिहारी महतो जैसे नेताओं ने भी आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। पिछले कुछ सालों में सोरेन परिवार ने अपना दबदबा बनाए रखा है। जिसने झारखंड मुक्ति मोर्चा को प्रभावी ढंग से हाईजैक कर लिया है और इसे एक पारिवारिक पार्टी में बदल दिया है। इस एकाधिकार ने अन्य प्रमुख हस्तियों को हाशिए पर डाल दिया है और पार्टी की आंतरिक विविधता को कम कर दिया है।

JMM को लेकर झारखंड में लोगों के बीच बढ़ता असंतोष
JMM के भीतर चल रहे सत्ता संघर्ष को झारखंड की जनता देख रही है, जिससे उनकी हताशा भी बढ़ती जा रही है। सोरेन का सालों तक समर्थन करने वालों को विश्वासघात का अहसास हो रहा है। ऐसे में लोगों के अंदर ऐसे नेतृत्व की मांग बढ़ रही है, जो व्यक्तिगत लाभ से ज्यादा राज्य के विकास को प्राथमिकता दे। चंपई सोरेन जैसे पुराने नेताओं को बार-बार दरकिनार किए जाने और भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद के जारी रहने की वजह से कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या सोरेन भविष्य में झारखंड का नेतृत्व करने के लिए सही हैं?

सत्ता से चिपके रहने की सोरेन की चाहत, उनकी पार्टी और झारखंड दोनों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है। सत्ता के उन्हीं पुराने खेलों से अब झारखंड की जनता ऊब चुकी है। ऐसे में सवाल बना हुआ है, क्या सोरेन आखिरकार राज्य के हितों को अपने हितों से ऊपर रखेंगे? या उनकी विरासत में छूटे हुए अवसर और अधूरे वादे ही मिलेंगे? इस बात का खुलासा तो अब झारखंड चुनाव के नतीजे ही तय कर पाएंगे।

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