सीबीआई कोर्ट ने 37 साल बाद एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव सहित चार को सुनाई सजा

लखनऊ। लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) अपनी कारगुजारियों के चलते हमेशा चर्चा में रहता है। कहने को तो प्राधिकारण की स्थापना सबको आवास उपलब्ध कराने के लिये हुई थी,लेकिन यहां जमीन और आवास का खूब खेल होता है। प्राधिकरण की योजनाओं में किसी प्रकार की धोखाधड़ी की उम्मीद नहीं रहती है, जिसके चलते हर व्यक्ति एलडीए से ही मकान खरीदना चाहता है जिसके लिये वह ऊपर से भी कुछ खर्च करने को तैयार हो जाता है। यहीं से बहना शुरू होती है भ्रष्टाचार की गंगा। ऐसा ही प्लाट घोटाला लखनऊ की जानकीपुरम योजना में हुआ था,जिस पर अब सीबीआई के विशेष न्यायाधीशने एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव समेत चार को सजा सुनाई है। अदालत ने तत्कालीन संयुक्त सचिव आरएन सिंह को तीन साल, तत्कालीन लिपिक राजनारायण को चार साल कैद की सजा सुनाई है। इनके अलावा महेंद्र सिंह सेंगर और दिवाकर सिंह को भी तीन-तीन साल की जेल की सजा सुनाई है। इसके अलावा कोर्ट ने आरएन सिंह पर 35 हजार रूपये, राज नारायण द्विवेदी पर साठ हजार रूपये महेंद्र और दिवाकर पर 15-15 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया है। इसी मामले में आरोपी रहे दयाशंकर सिंह को अदालत ने बरी कर दिया है। इस बी

सीबीआई कोर्ट ने 37 साल बाद एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव सहित चार को सुनाई सजा
लखनऊ। लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) अपनी कारगुजारियों के चलते हमेशा चर्चा में रहता है। कहने को तो प्राधिकारण की स्थापना सबको आवास उपलब्ध कराने के लिये हुई थी,लेकिन यहां जमीन और आवास का खूब खेल होता है। प्राधिकरण की योजनाओं में किसी प्रकार की धोखाधड़ी की उम्मीद नहीं रहती है, जिसके चलते हर व्यक्ति एलडीए से ही मकान खरीदना चाहता है जिसके लिये वह ऊपर से भी कुछ खर्च करने को तैयार हो जाता है। यहीं से बहना शुरू होती है भ्रष्टाचार की गंगा। ऐसा ही प्लाट घोटाला लखनऊ की जानकीपुरम योजना में हुआ था,जिस पर अब सीबीआई के विशेष न्यायाधीशने एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव समेत चार को सजा सुनाई है। अदालत ने तत्कालीन संयुक्त सचिव आरएन सिंह को तीन साल, तत्कालीन लिपिक राजनारायण को चार साल कैद की सजा सुनाई है। इनके अलावा महेंद्र सिंह सेंगर और दिवाकर सिंह को भी तीन-तीन साल की जेल की सजा सुनाई है। इसके अलावा कोर्ट ने आरएन सिंह पर 35 हजार रूपये, राज नारायण द्विवेदी पर साठ हजार रूपये महेंद्र और दिवाकर पर 15-15 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया है। इसी मामले में आरोपी रहे दयाशंकर सिंह को अदालत ने बरी कर दिया है। इस बीच आरोपी भूपेंद्रनाथ श्रीवास्तव और ऊषा सिंह की मृत्यु हो चुकी है।

वर्ष 1987 से 1999 के दौरान एलडीए के जानकीपुरम योजना में प्लॉट आवंटन घोटाले को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 21 फरवरी 2006 को मामले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया था। सीबीआई ने 28 फरवरी 2006 को तत्कालीन संयुक्त सचिव आरएन सिंह और लिपिक राजनारायण द्विवेदी समेत सात आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करके विवेचना शुरू की थी।

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सीबीआई की विवेचना के दौरान पता चला कि वर्ष 1987 से 1999 के दौरान, एलडीए की जानकीपुरम योजना के 123 भूखंडों को आरोपी संयुक्त सचिव स्तर के कई अधिकारियों ने उन लोगों को आवंटित कर दिया, जिन्होंने पंजीकरण फॉर्म तक नहीं भरे थे। यही नहीं जमीन के आंवटन के लिए जरूरी रकम तक जमा नहीं की थी। एलडीए के तत्कालीन प्रधान लिपिकों व अन्य लिपिकों की भी इसमें मिलीभगत रही। सीबीआई ने 6 फरवरी 2010 को आरएन सिंह समेत सात आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। खैर, इतनी देर से आये ऐसे फैसलों की अहमियत क्या रह जाती है,यह एक विचारणीय प्रश्न है।

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