देश के दूसरे सबसे छोटे व कम आबादी वाले राज्य सिक्किम में क्षेत्रीय दलों का दबदबा अधिक है। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में राज्य ने पिछले 25 सालों से राज्य में शासन करने वाले SDF को नकारकर महज 6 साल वाली पार्टी SKM पर भरोसा जताया। बता दें कि राज्य की 32 विधानसभा सीटों में SMK ने 17 सीटों पर कब्जा जमाया था। वहीं एसडीएफ सिर्फ 15 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह से सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने महज 6 सालों में राज्य की जनता का भरोसा हासिल कर लिया।
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की स्थापना
आपको बता दें कि साल 2009 में मनमुटाव के चलते पवन चामलिंग से पी.एस. तमांग का शीत युद्ध शुरू हो गया। पीएस तमांग पवन चामलिंग से उनकी सरकार की आलोचना करते-करते बगावत पर उतारू हो गए। वहीं 04 फरवरी 2013 को उन्होंने सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा नामक अलग दल बना लिया था। फिर साल 2014 में विधानसभा चुनाव लड़ा। तब सिक्किम के पूर्व सीएम और सिक्किम संग्राम परिषद के अध्यक्ष नर बहादुर भंडारी ने अपनी पार्टी को चुनाव से अलग रखते हुए गोले को बिना किसी शर्त के समर्थन दिया। साथ ही उनके पक्ष में हवा भी बनाई।
एक ओर पूर्व सीएम बी.बी. गुरुंग ने भी एसडीएफ को त्यागकर पी.एस. तमांग और उनकी पार्टी का समर्थन किया। उस लहर पर सवान होने के बाद पीएस तमांग अब राज्य़ की सत्ता पर काबिज हो गए। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में पी.एस गोले खुद भी विधायक रहे और राज्य की 32 में से 10 सीटों पर कब्जा जमाया। सिक्किम विपक्षहीन विधानसभा में मजबूत विपक्ष आया। हांलाकि साल 2015 में गोले के 7 विधायक एसडीएफ में शामिल गए।
तभी गोले पर भ्रष्टाचार का मुकदमा भी चला। इस दौरान उन्हें दोषी करार दिया गया आर 2016 में 10,000 रुपए जुर्माने के साथ 1 साल की कैद हो गई। साल 2018 को पीएस गोले की जमानत पर रिहाई हुई और उनके स्वागत में इतनी अधिक भीड़ उमड़ी कि राज्य के राजनीतिक इतिहास में इसकी नजीर नहीं मिलती है। जिसके बाद साल 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 17 सीटों पर कब्जा जमाकर सत्ता पर काबिज हुई। ऐसे में एक बार फिर सिक्किम विधानसभा चुनाव 2024 में पार्टी नया इतिहास लिखने को तैयार है।