Jharkhand: चंपई सोरेन भाजपा में आ तो गए लेकिन पार्टी को क्या होगा फायदा, नुकसान की भी क्यों बढ़ी संभावना?

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन हाल ही में भाजपा में शामिल हुए थे। झारखंड में भाजपा के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में उन्होंने भाजपा में एंट्री ली है। शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें भाजपा की संपत्ति बताया। ये बात सही है कि चुनावी मौसम में किसी भी दल में नेताओं का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन चंपई सोरेन जैसे नेताओं पर अगर भाजपा ने दांव लगाया है तो जाहिर सी बात है कि उसे कुछ ना कुछ फायदे की उम्मीद जरूर होगी। हालांकि, ऐसा नहीं है कि चंपई सोरेन के आने से भाजपा को सिर्फ फायदा ही होगा। कुछ नुकसान के भी संकेत मिल रहे हैं। जहां आदिवासी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने में भाजपा को मदद मिलेगी। वहीं पार्टी के भीतर गुटबाजी बढ़ाने के भी आशंका दिखाई देती है। इसे भी पढ़ें: Jharkhand: चुनाव से पहले विस्तार में जुटी BJP, पूर्व सीएम मधु कोड़ा और जेएमएम से निष्कासित नेता लोबिन हेम्ब्रोम हुए शामिलबीजेपी को क्या होगा फायदाहाल के वर्षों में झारखंड में भाजपा कमजोर हुई है। 2024 के आम चुनावों में भी हमने देखा कि पार्टी अनुसूचित जनजातियों के लि

Jharkhand: चंपई सोरेन भाजपा में आ तो गए लेकिन पार्टी को क्या होगा फायदा, नुकसान की भी क्यों बढ़ी संभावना?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन हाल ही में भाजपा में शामिल हुए थे। झारखंड में भाजपा के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में उन्होंने भाजपा में एंट्री ली है। शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें भाजपा की संपत्ति बताया। ये बात सही है कि चुनावी मौसम में किसी भी दल में नेताओं का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन चंपई सोरेन जैसे नेताओं पर अगर भाजपा ने दांव लगाया है तो जाहिर सी बात है कि उसे कुछ ना कुछ फायदे की उम्मीद जरूर होगी। हालांकि, ऐसा नहीं है कि चंपई सोरेन के आने से भाजपा को सिर्फ फायदा ही होगा। कुछ नुकसान के भी संकेत मिल रहे हैं। जहां आदिवासी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने में भाजपा को मदद मिलेगी। वहीं पार्टी के भीतर गुटबाजी बढ़ाने के भी आशंका दिखाई देती है।

 

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बीजेपी को क्या होगा फायदा

हाल के वर्षों में झारखंड में भाजपा कमजोर हुई है। 2024 के आम चुनावों में भी हमने देखा कि पार्टी अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सभी पांच लोकसभा सीटें हार गई। 2019 का झारखंड विधानसभा चुनाव भी इसी तरह निराशाजनक रहा, जिसमें भाजपा ने 28 आरक्षित सीटों में से केवल दो पर जीत हासिल की। हेमंत की अनुपस्थिति में, चंपई के नेतृत्व में, इंडिया ब्लॉक ने झारखंड में 2024 के लोकसभा चुनावों में 14 लोकसभा सीटों में से पांच सीटें हासिल कीं, जो 2019 की तुलना में तीन अधिक हैं। जेएमएम, राजद, सीपीआई-एमएल और कांग्रेस वाले इंडिया ब्लॉक ने सभी पांच एसटी सीटें जीतीं।

विधानसभा की 81 सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। और एसटी की लगभग 20 सीटें दक्षिणी और पूर्वी आदिवासी इलाकों में हैं। कोल्हान की जमीनी स्तर की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति चंपई सोरेन के आगामी विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण प्रभाव डालने की उम्मीद है। पांच साल पहले भाजपा की रघुबर दास सरकार को हेमंत सोरेन की जेएमएम और उसके सहयोगियों के हाथों चुनावी हार का सामना करना पड़ा था।

आदिवासी कार्ड

चंपई का भाजपा में जाना झामुमो पर आदिवासियों का अपमान करने के भाजपा के आरोपों से मेल खाता है। अप्रैल में, हेमंत सोरेन के नेतृत्व के प्रति लंबे समय से चली आ रही नाराजगी के कारण झामुमो के संरक्षक शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने को भी चुनावी वर्ष में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भाजपा द्वारा एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा गया था। चंपई सोरेन पहले ही पूर्वोत्तर संथाल बेल्ट, एक अन्य आदिवासी बेल्ट और सोरेन परिवार के गढ़ में बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर बड़ी आवाज उठा चुके हैं। भाजपा भी यही बात उठाती रही है।
 

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कहा होगी दिक्कत

चंपई सोरेन का भाजपा में शामिल होना एक दोधारी तलवार प्रतीत होता है और महत्वपूर्ण चुनावों से पहले पार्टी नेतृत्व के लिए सिरदर्द बन सकता है। एक ओर, यह झारखंड की आदिवासी आबादी के बीच अपनी अपील को मजबूत करके और झारखंड के आदिवासी-भारी इलाकों में संभावित रूप से अपनी चुनावी संभावनाओं को बढ़ाकर भाजपा को एक रणनीतिक लाभ प्रदान करता है। भाजपा के लिए पार्टी के भीतर बहुत बड़ी समस्या होने वाली है। अब  झारखंड में भाजपा चार पूर्व मुख्यमंत्रियों, चंपई सोरेन, बाबूलाल मरांडी, मधु कोड़ा और अर्जुन मुंडा के साथ बढ़ती जा रही है, जिससे शीर्ष पद के लिए उम्मीदवारों की संख्या बढ़ गई है। एक पार्टी के लिए कई सत्ता केंद्र अच्छे संकेत नहीं हैं, जिसके लिए लोकसभा चुनाव में सीटों में गिरावट के बाद विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण हैं। पार्टी में गुटबाजी भी बढ़ सकती है। 

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