श्री सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज के प्रमुख और श्रीमती एन.एम. पाडलिया फार्मेसी कॉलेज के मेनेजिंग ट्रस्टी श्री मगनभाई पटेल द्वारा हाल ही में अहमदाबाद के सरखेज-चांगोदर रोड पर श्रीमती एन.एम. पाडलिया फार्मेसी कॉलेज में "वृक्षारोपण अभियान-२०२४" का उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर चांगोदर पुलिस थाने के पी.आई श्री ए.पी. चौधरी, पुलिस सब इंस्पेक्टर श्री आर.डी. दिवाकर और हेड कांस्टेबल श्री धर्मेंद्रसिंह डोड, श्री जे.के. बारड और पुलिस कांस्टेबल श्री एम.सी. मसानी उपस्थित रहे थे और विभिन्न प्रजातियों के लगभग २०० पेड़ दान देने की घोषणा की। इन सभी महानुभावों को कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ.जीतेन्द्र भंगालेने पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर श्री मगनभाई पटेलने कहा कि आज भारत मे २०० करोड़ नये पेड़ लगाने की जरूरत है। भारत के पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में वृक्षारोपण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के नाते,आज भारत विभिन्न पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है। जलवायु परिवर्तन को कम करने और नागरिकों की सुखाकारी में सुधार के लिए वृक्षारोपण एक महत्वपूर्ण प्रथा है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदीने संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन) में ग्लोबल वार्मिंग एव ग्रीन एनवायरमेंट की आवश्यकता पर बार-बार जोर दिया है और कहा है कि अगली पीढ़ी के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्यावरण की रक्षा करना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है।
श्री मगनभाई पटेलने आगे कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण आज पूरी दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती है।आज हम प्रकृति के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं जो हमारी आनेवाली पीढ़ी के लिए एक गंभीर समस्या है। हमारी भारतीय संस्कृति में पेड़ों का विशेष महत्व है, हमारे पूर्वजोंने पेड़ों को काटने नहीं दिया क्योंकि पेड़मे भी जीव होता है और किसी भी रूप में उनकी पूजा करना भारतीय संस्कृति है, लेकिन बड़े दुःख की बात है की हमारे देश में लोग रोजाना पीपल के पेड़ की परिक्रमा करते हैं और उसी पीपल के पेड़ को काट भी देते है।अब सरकार भी इस मामले को लेकर काफी सतर्क हो गई है और जहां नया निर्माणकार्य हो रहा हो वहां सरकारी नियमों के मुताबिक पेड़ लगाना अनिवार्य कर दिया है जो अच्छी बात है लेकिन आज भी लोग इसका पालन नहीं करते हैं जो एक चिंता का विषय भी है। नगर योजना या शहरी विकास योजना में पेड़ों के लिए एक खुली जगह रखनी होती है, जहाँ पेड़ लगाने होते हैं और उन पेड़ों को उगाने की शर्त पर योजना पारित की जाती है, लेकिन कुछ वर्षों के बाद लोग लगाए गए पेड़ों को हटा देते हैं और उस जगह का उपयोग पार्किंग एव अन्य उद्देश्यों के लिए करते हैं जो वास्तव में अवैध है। सरकार हर जगह ध्यान नहीं दे सकती तो ऐसे कानूनों का पालन करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।वृक्षारोपण प्रकृति प्रदत्त एक व्यवस्था है लेकिन आज हम सभी पेड़ों को अंधाधुंध काट रहे हैं जो घोर पाप है। पेड़ों को काटकर हमने पशु-पक्षि एव अन्य कई जीव-जंतुओं का आश्रय छीन लिया है। पक्षी पर्यावरण का निर्माण करनेवाले कारकों में से एक हैं, लेकिन चूंकि हम सभी भौगोलिक क्षेत्र का विस्तार करने के लिए प्रकृति के खिलाफ काम करते हैं,जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है। आज अमेरिका या यूरोप जैसे देशों में तापमान ४० डिग्री तक पहुंच जाता है, जबकि मिडल ईस्ट और भारत में तापमान ४५ से ५० डिग्री तक पहुंच जाता है। हमारे देश में हिमालय और बर्फीले पहाड़ पिघल रहे हैं और जहां १५ से २० इंच बारिश होती है,वहां आज ४० इंच बारिश हो रही है।आज पूरे विश्व में प्रकृति के विरुद्ध किये गये कार्यों का परिणाम मानवसृष्टि भुगत रही है। तेजी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध भूमि की कमी हो गई है, जिससे वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढना एक चुनौती बन गया है।
श्री मगनभाई पटेलने वृक्षारोपण के महत्व और इसकी उपयोगिता के बारे में आगे बताया कि वृक्षारोपण बिगडी हुई इको सिस्टम को पुनःस्थापित करने में मदद करता है और जैव विविधता का संरक्षण करता है एव विभिन्न वन्यजीवों के साथ-साथ पृथ्वी के अन्य जीवों के लिए आवास भी प्रदान करता है। वृक्षारोपण मिट्टी के कटाव को रोकने, नमी बनाए रखने और पेड़ों की जड़ों के पोषक तत्व को बढ़ावा देकर मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने में मदद करता है। इससे कृषि योग्य मिट्टी स्वस्थ होती है और फसल उत्पादकता भी बढ़ती है।पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं,ऑक्सीजन छोड़ते हैं और प्राकृतिक वायु शोधक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने और घनी आबादीवाले क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है। ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ती दर के कारण वनों की कटाई एक बड़ी समस्या बन गई है। पेड़ तापमान को नियंत्रित करने और मौसम की स्थिति को वर्षा के लिए अनुकूल बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे लकड़ी, भोजन, ईंधन, कागज आदि भी प्रदान करते हैं, जो हमारे दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पेड़ अपने भीतर पांच सौ प्रजातियों को बसाने की क्षमता रखते हैं। कम उम्र में वे पक्षियों, कीड़ों और कवक के समुदायों के लिए आवास और भोजन प्रदान करते हैं। जब वे बड़े होते हैं, तो उनके तने चमगादड़, भृंग, उल्लू और कठफोड़वा जैसी प्रजातियों के लिए आवश्यक खोखला आवरण प्रदान करते हैं। पेड़ अक्सर पृथ्वी की सतह पर लंगर के रूप में कार्य करते हैं। बरगद के पेड़ जैसी प्रजातियों की जड़ें व्यापक होती हैं जो मिट्टी को पकड़कर रखती हैं और सतह को स्थिर करने में मदद करती हैं। इससे भूस्खलन, चट्टानों के खिसकने और हिमस्खलन के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। बाढ़ के दौरान पेड़ पानी को सोख लेते हैं और उससे होने वाले नुकसान को कम करते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ धीमी गति से बढ़ने वाले पेड़ों में तूफान-प्रतिरोधी क्षमताएं होती हैं और ये प्राकृतिक आपदाओं से राहत प्रदान करने में मदद करते हैं। मनुष्य के आर्थिक विकास में पादप जीवन का सबसे पहला योगदान रहा है। आज पेड़ साज-सज्जा, चिकित्सा, सौंदर्य प्रसाधन, रबर, ईंधन और कई अन्य क्षेत्रों में कच्चे माल का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। अच्छी तरह से देखभाल और अधिक पेड़ लगाने से जलवायु में गर्मी का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है जिससे आपके स्थान पर शीतलन लागत कम हो सकती है और पेड़ उगाने वाली सीएसआर गतिविधियाँ निगमों को बेहतर कार्यबल बनाने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
श्री मगनभाई पटेलने पेड़ो के बारेमे अधिक जानकारी देते हुए कहा कि यदि कोई पशु-पक्षी, धरती पर रहनेवाले कुछ जीव-जंतु और मनुष्य फल के बीज को मिट्टी जब फेंकते हैं तो वहां पेड़-पौधे उग आते हैं। पशु-पक्षियों के मल, बिना खाए फल या फूलों के छोटे-छोटे कण हवा के माध्यम से बाहर गिरते हैं तब वहां प्राकृतिक पौधों का निर्माण होता हैं और धीरे-धीरे पेड़ों,लताओं और बाद में कई जंगल बन जाते हैं। जंगलों में ऐसे कई पेड़ उगने के बाद छोटे-छोटे जैविक वन्य जीव जैसे केंचुए,चींटियाँ, मैगट या अन्य जीव पेड़ों की पत्तियों को खाकर अपने मल छोड़ते है वह खाद बन जाता हैं और जहाँ वे विचरण करते हैं वहा प्राकृतिक खेती हो जाती हैं। १०० साल पहले जंगल का लगभग ४०% भाग पेड़ों से ढका हुआ था,जो आज घटकर लगभग १०% रह गया है। आज हम सभीने पर्यावरण को संरक्षित करने के बजाय विनाश ही किया है। देश के सभी राज्यों में प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए रखने और उसकी समस्याओं से निपटने के लिए वृक्षारोपण अभियान आज के समय की मांग है। इसी कॉलेज के परिसर में करीब ३५० पेड़ लगाए गए थे जिसमें कोनोकार्पस के करीब २५० पेड़ थे जो बहुत बड़े थे लेकिन सरकार की सूचना के कारण उन सभी पेड़ों को काट दिया गया इसलिए आज गणमान्य व्यक्तियों के हाथो करीब ३५० बड़े पेड़ लगाए गए। आज इस कॉलेज के पटांगन में २० से २५ साल पुराने कई नीम के पेड़ देखकर प्रकृति का सुखद अहसास होता है।
श्री मगनभाई पटेलने आगे कहा कि गुजरात के गोंडल राज्य यानी महाराजा भगवतसिंहजी के समय में लगभग १८० गांव थे और सभी गांवों में गौ-शालाए थी,गौचर थे, हर जगह पेड़ लगाए गए थे ताकि गायें उस पेड़ की छाँव में खड़ी रह सकें और पूरा बुनियादी ढांचा सड़कों से कनेक्ट था और सड़कों की दोनों तरफ पेड़ थे जो एक-दूसरे को ओवरलैप करते हुए सड़क पर छाँव डालते थे। प्रत्येक पेड़ पर एक नंबर अंकित किया जाता था, जिसे पर्यावरण संरक्षण का एक बड़ा उदाहरण माना जाता था।आज हम वर्षों तक पौधे लगाते हैं लेकिन उसकी संभाल के अभाव में वे सूख जाते हैं और फिर उसी जगह पर कुछ सरकारी संगठन,सामाजिक संगठन,स्कूल एव कॉलेजों द्वारा उसी स्थान पर दोबारा पेड़ लगाए जाते है जो एक फोटो शूट जैसा सस्ता प्रचार प्रतीत होता है।