SEBI ने सालाना ऑडिट खाते, नेटवर्थ प्रमाणपत्र जमा करने की समयसीमा बढ़ायी

पूंजी बाजार नियामक सेबी ने बृहस्पतिवार को शेयर ब्रोकर और डिपॉजिटरी प्रतिभागियों के सालाना ऑडिट खातों और नेटवर्थ प्रमाणपत्र जमा करने की समयसीमा 31 अक्टूबर तक बढ़ा दी। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक परिपत्र में कहा कि संबंधित वर्ष के लिए जमा करने की समयसीमा को 30 सितंबर से 31 अक्टूबर कर दिया गया है। इस बदलाव का मकसद अनुपालन बोझ को कम करना और कारोबारी परिचालन को सुविधाजनक बनाना है। सेबी ने परिपत्र में कहा, ‘‘कारोबार सुगमता की दिशा में कदम उठाते हुए समयसीमा को 31 अक्टूबर करने का निर्णय लिया गया है।’’ परिपत्र के प्रावधान तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। इसमें शेयर ब्रोकर और डिपॉजिटरी प्रतिभागियों (डीपी) के लिए प्रमुख प्रावधानों को स्पष्ट किया गया है। इसके तहत शेयर ब्रोकर को अब 31 अक्टूबर तक अपने वार्षिक ऑडिट खाते देने होंगे। इसके अलावा, डिपॉजिटरी को 31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष के लिए अपने नेटवर्थ प्रमाण पत्र 31 अक्टूबर तक जमा करने होंगे। नियामक ने शेयर बाजारों/डिपॉजिटरीज को अपने सदस्यों और प्रतिभागियों को बदलावों के बारे में सूचित करने का निर्देश दिया ह

SEBI ने सालाना ऑडिट खाते, नेटवर्थ प्रमाणपत्र जमा करने की समयसीमा बढ़ायी

पूंजी बाजार नियामक सेबी ने बृहस्पतिवार को शेयर ब्रोकर और डिपॉजिटरी प्रतिभागियों के सालाना ऑडिट खातों और नेटवर्थ प्रमाणपत्र जमा करने की समयसीमा 31 अक्टूबर तक बढ़ा दी।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक परिपत्र में कहा कि संबंधित वर्ष के लिए जमा करने की समयसीमा को 30 सितंबर से 31 अक्टूबर कर दिया गया है। इस बदलाव का मकसद अनुपालन बोझ को कम करना और कारोबारी परिचालन को सुविधाजनक बनाना है।

सेबी ने परिपत्र में कहा, ‘‘कारोबार सुगमता की दिशा में कदम उठाते हुए समयसीमा को 31 अक्टूबर करने का निर्णय लिया गया है।’’ परिपत्र के प्रावधान तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। इसमें शेयर ब्रोकर और डिपॉजिटरी प्रतिभागियों (डीपी) के लिए प्रमुख प्रावधानों को स्पष्ट किया गया है।

इसके तहत शेयर ब्रोकर को अब 31 अक्टूबर तक अपने वार्षिक ऑडिट खाते देने होंगे। इसके अलावा, डिपॉजिटरी को 31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष के लिए अपने नेटवर्थ प्रमाण पत्र 31 अक्टूबर तक जमा करने होंगे।

नियामक ने शेयर बाजारों/डिपॉजिटरीज को अपने सदस्यों और प्रतिभागियों को बदलावों के बारे में सूचित करने का निर्देश दिया है। साथ ही उन्हें निर्णय के कार्यान्वयन के लिए अपने उपनियमों, नियमों और विनियमों को अद्यतन करने का भी आदेश दिया गया।

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