राजस्थान के बूंदी जिले में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां बूंदी जिले में दो नाबालिग बहनें सिंदूर लगाकर और रंग बिरंगी चूड़ियां पहनकर स्कूल पहुंची। जैसे ही दोनों बहनें स्कूल पहुंची तो शिक्षकों को शक हुआ की उनकी शादी की गई है। हालांकि शिक्षकों ने इस घटना को नजरअंदाज कर दिया क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है।
जानकारी के मुताबिक दोनों बहने रानी (15) और पिंकी (16) (बदले हुए नाम) की शादी 15 जुलाई को उनके झोपड़ा गांव स्थित उनके घर पर धूमधाम से की गई है। शादियों का मौसम खत्म होने से दो दिन पहले ही दोनों नाबालिग लड़कियों की शादी कर दी गई। दोनों ही अन्य पिछड़ी जाति से आती है। हिंडोली क्षेत्र के सरकार स्कूल में पढ़ने वाली दोनों बहनों की शादी कर दी गई है।
बाल विवाह पर जहां रोक लगाए जाने की बात कही जाती है वहीं इसे लेकर सख्त कानून भी बनाए गए है। इसके बाद भी राजस्थान में कानून को ताक पर रखकर बाल विवाह की प्रथा बादस्तूर जारी है। जानकारी के मुताबिक कई बार होता है कि लड़कियों की शादी के बाद पति या ससुराल पक्ष का कोई सदस्य बालिका वधू को मोटरसाइकिल से स्कूल छोड़ने आता दिख जाता है। इस संबंध में बूंदी शहर में घरेलू सहायिका का काम करने वाली रुकमणि बाई ने पीटीआई भाषा को बताया कि लड़कियों की ताई होने के कारण मैंने उनका कन्या दान किया है। उन्होंने बताया कि दोनों बच्चों की शादी में शामिल होने के लिए उन्होंने काम से भी चार दिन की छुट्टी ली थी। दोनों बहनों की शादी में उन्होंने 10,000 रुपये के उपहार दिए है।
इस संबंध में सरकारी स्कूल के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्होंने एक दिन अचानक एक लड़की को सिंदूर और रंग-बिरंगी चूड़ियां पहने आते देखा, लेकिन वे इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सके। उन्होंने कहा, “कभी-कभी कक्षा में लड़कियां अपने सहेली की शादी के बारे में कानाफूसी करती हैं। दुल्हन आमतौर पर या तो शरमा जाती है या अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाकर सवाल को टाल देती है।” शिक्षक ने कहा कि एक बार विवाह हो जाने के बाद अधिकारियों से शिकायत करने से कोई लाभ नहीं होता, तथा इससे स्थानीय लोगों के क्रोध का जोखिम बना रहता है, जो लड़की को स्कूल से निकाल सकते हैं। हाल में हुई दो बहनों की शादी के बारे में पूछा गया तो उनके शिक्षकों ने अनभिज्ञता जाहिर की, लेकिन इस बात की पुष्टि की कि दोनों बहनें काफी दिनों से स्कूल से अनुपस्थित थीं।
इलाके के लोगों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अक्सर शादी पर आने वाले खर्च को बचाने के लिए अपनी छोटी बेटी का विवाह भी बड़ी बेटी के साथ ही कर देते हैं, हालांकि छोटी बेटी को वयस्क होने तक ससुराल नहीं भेजा जाता है। अधिकारी ऐसे विवाहों पर नजर रखते हैं, लेकिन यह तंत्र इस पर पूरी तरह रोक नहीं लगा पा रहा है, खासकर तब, जब मुख्यधारा के राजनीतिक नेताओं को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता है। कुछ ग्रामीणों ने ऐसी शादियों के “सकारात्मक” पहलुओं का हवाला दिया और बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में संशोधन की मांग भी की।
एक ग्रामीण ने बताया, “नाबालिग दंपति लड़कियों की शिक्षा और सरकारी नौकरी को प्राथमिकता देते हैं तथा बाल विवाह के बाद भी वे अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल और कॉलेज भेजते हैं।” भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ओबीसी मोर्चे के बूंदी जिला महासचिव दीक्षांत सोनी ने स्वीकार किया कि गांवों में बाल विवाह होते हैं और उन्होंने बाल विवाह अधिनियम में संशोधन की मांग की। सोनी ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में माता-पिता गरीबी के कारण अपनी लड़कियों की कम उम्र में ही शादी करने को मजबूर हैं। उन्होंने लड़के और लड़कियों में ‘समय से पहले यौवन’ आने के लिए ‘खान-पान की आदतों के साथ बदलते पर्यावरण’ को भी जिम्मेदार ठहराया। सोनी ने कहा, “लड़कियां और लड़के जल्दी परिपक्व हो जाते हैं तथा किसी और के साथ शादी कर अपने माता-पिता को अपमानित करते हैं।”
सामाजिक न्याय एवं महिला अधिकारिता विभाग के उप निदेशक भैरू प्रकाश नागर के अनुसार, क्षेत्र में अक्सर अक्षय तृतीया, जिसे आखा तीज और पीपल पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, के आसपास बाल विवाह होते हैं। जब उनसे हिंडोली गांव में हुई दो शादियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसके बारे में जानकारी होने से इनकार किया। स्थानीय पुलिस उपाधीक्षक घनश्याम मीणा ने क्षेत्र में बाल विवाह की खबरों से इनकार किया। कुछ अन्य शिक्षकों ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि रानी और पिंकी का बाल विवाह होना इस तरह की इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। एक शिक्षक ने दावा किया कि हिंडोली के सुखपुरा गांव में सातवीं कक्षा की एक लड़की की पिछले साल नौवीं कक्षा के एक लड़के के साथ सगाई कर दी गई थी। सातवीं कक्षा की एक अन्य लड़की की पिछले साल शादी कर दी गई थी। शिक्षक के अनुसार, 10वीं कक्षा की एक लड़की की इस साल चार मार्च कोबिजली रखरखाव कर्मचारी से शादी कर दी गई। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच (2019-21) के अनुसार, 20-24 वर्ष की आयु की 23.3 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो गई थी।