Former CJI Ranjan Gogoi ने न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक के बीच लकीर खींची
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक के बीच एक लकीर खींचते हुए शुक्रवार को कहा कि यह चयन करना न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वह बदलाव के लिए उत्प्रेरक के रूप में कब कार्य करे और कब यथास्थिति बरकरार रखे। न्यायमूर्ति गोगोई ने न्यायिक प्रणालियों को बदलते समय के अनुरूप ढालने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया, जिसे विश्व स्तर पर मान्यता मिल रही है। उन्होंने कहा, ‘‘बदलाव के लिए कब उत्प्रेरक के तौर पर कार्य करना चाहिए और कब यथास्थिति बनाये रखना है, इसका चयन न्यायपालिका की अपार जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।इस संदर्भ में न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक के बीच अंतर काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।’’ वह गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 76वें स्थापना दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। राज्यसभा सदस्य न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘‘न्यायिक सक्रियता, न्यायिक अतिरेक के समान नहीं है। पहला शांतिदूत है तो दूसरा एक अतिचारी है।’’ उन्होंने कहा कि पर्याप्त संसाधनों और कर्मियों से संपन्न एक कार्यात्मक न्यायपालिका अब विलासिता नहीं, बल्कि राष्ट

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक के बीच एक लकीर खींचते हुए शुक्रवार को कहा कि यह चयन करना न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वह बदलाव के लिए उत्प्रेरक के रूप में कब कार्य करे और कब यथास्थिति बरकरार रखे।
न्यायमूर्ति गोगोई ने न्यायिक प्रणालियों को बदलते समय के अनुरूप ढालने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया, जिसे विश्व स्तर पर मान्यता मिल रही है। उन्होंने कहा, ‘‘बदलाव के लिए कब उत्प्रेरक के तौर पर कार्य करना चाहिए और कब यथास्थिति बनाये रखना है, इसका चयन न्यायपालिका की अपार जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।इस संदर्भ में न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक के बीच अंतर काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।’’
वह गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 76वें स्थापना दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। राज्यसभा सदस्य न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘‘न्यायिक सक्रियता, न्यायिक अतिरेक के समान नहीं है। पहला शांतिदूत है तो दूसरा एक अतिचारी है।’’
उन्होंने कहा कि पर्याप्त संसाधनों और कर्मियों से संपन्न एक कार्यात्मक न्यायपालिका अब विलासिता नहीं, बल्कि राष्ट्र के निरंतर विकास के लिए एक अनिवार्यता है। पूर्व सीजेआई ने कहा कि न्यायिक संस्थाएं केवल ईंटों और गारे से नहीं बनी हैं, बल्कि ये आशा के गलियारे हैं।
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