Defamation Case : अदालत मेधा पाटकर को एक जुलाई को सुनाएगी सजा

नयी दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना की ओर से दर्ज कराए गए मानहानि के मामले में एक जुलाई को फैसला सुनाएगी। मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा कि दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) ने पीड़ित प्रभाव रिपोर्ट (वीआईआर) प्रस्तुत की है। इसके बद उन्होंनेअपना फैसला सुरक्षित रख लिया। यह रिपोर्ट अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने के बाद पीड़ित को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए तैयार की जाती है। इस अपराध के लिए अधिकतम दो वर्ष तक का साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। इससे पहले अदालत ने 24 मई को शिकायत दर्ज होने के करीब 23 वर्ष बाद ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ (एनबीए) की नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को उनके खिलाफ सक्सेना की ओर से दायर मानहानि मामले में दोषी ठहराया था। अदालत ने कहा था कि सक्सेना को ‘‘देशभक्त नहीं, बल्कि कायर कहने वाला और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाने वाला पाटकर का बयान न केवल अपने आप में मानहानि के समान है, बल्कि इसे नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए गढ़ा गया था।’’ इसे भी पढ़ें: नरेन्द्र

Defamation Case : अदालत मेधा पाटकर को एक जुलाई को सुनाएगी सजा
नयी दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना की ओर से दर्ज कराए गए मानहानि के मामले में एक जुलाई को फैसला सुनाएगी। मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा कि दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) ने पीड़ित प्रभाव रिपोर्ट (वीआईआर) प्रस्तुत की है। इसके बद उन्होंनेअपना फैसला सुरक्षित रख लिया। यह रिपोर्ट अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने के बाद पीड़ित को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए तैयार की जाती है। इस अपराध के लिए अधिकतम दो वर्ष तक का साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। 

इससे पहले अदालत ने 24 मई को शिकायत दर्ज होने के करीब 23 वर्ष बाद ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ (एनबीए) की नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को उनके खिलाफ सक्सेना की ओर से दायर मानहानि मामले में दोषी ठहराया था। अदालत ने कहा था कि सक्सेना को ‘‘देशभक्त नहीं, बल्कि कायर कहने वाला और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाने वाला पाटकर का बयान न केवल अपने आप में मानहानि के समान है, बल्कि इसे नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए गढ़ा गया था।’’
 

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पाटकर और सक्सेना के बीच वर्ष 2000 से ही एक कानूनी लड़ाई जारी है, जब पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के विरुद्ध एक वाद दायर किया था। सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके (सक्सेना के) खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस को मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे।

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